धर्मेंद्र प्रधान ने कहा,राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सभी भाषाओं को मिला है समान महत्व
धर्मेंद्र प्रधान ने कहा,राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सभी भाषाओं को मिला है समान महत्व
वाराणसी, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सभी भाषाओं को महत्व दिया गया है। इसी महत्व को समझते हुए काशी में एक महीने काशी तमिल संगमम का आयोजन किया जा रहा है।
धर्मेंद्र प्रधान ने शुक्रवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि एक महीने तक चलने वाले इस कार्यक्रम में तमिलनाडु के तीन केंद्रों से 12 समूहों में कुल 2500 लोगों को काशी आमंत्रित किया जा रहा है, जो काशी की संस्कृति और इसके महत्व को समझेंगे।
उन्होंने बताया कि ‘काशी तमिल संगमम’ कार्यक्रम में भारतीय संस्कृति की इन दो प्राचीन अभिव्यक्तियों के विभिन्न पहलुओं पर विशेषज्ञों एवं विद्वानों के बीच अकादमिक आदान प्रदान सेमिनार, चर्चा आदि आयोजित किए जाएंगे जहां दोनों के बीच संबंधों और साझा मूल्यों को आगे लाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। इसका व्यापक उद्देश्य ज्ञान और संस्कृति की इन दो परंपराओं को करीब लाना, हमारी साझा विरासत की एक समझ निर्मित करना और इन क्षेत्रों लोगों के बीच पारस्परिक संबंधों को मजबूत करना है।
धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि तमिलनाडु से आए समूह काशी की ऐतिहासिक महत्ता को समझेंगे। इस दौरान तमिलनाडु की विभिन्न सांस्कृतिक टोली काशी में अपना सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करेंगे। इसके अलावा तमिलनाडु के छोटे व्यवसायी काशी में अपना स्टाल लेकर आएंगे और अपने व्यापारिक गतिविधियों को आगे ले जाएंगे। प्रधान ने कहा कि ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की समग्र रूपरेखा और भावना के तहत आयोजित होने वाला ये संगमम प्राचीन भारत और समकालीन पीढ़ी के बीच एक सेतु का निर्माण करेगा। उन्होंने कहा कि काशी संगमम ज्ञान, संस्कृति और विरासत के इन दो प्राचीन केंद्रों के बीच की कड़ी को फिर से जोड़ेगा। उन्होंने बताया कि समूह काशी के अलावा प्रयागराज और अयोध्या भी जाएगा जहां की संस्कृति के बारे में जान सकेंगे।
प्रधान ने बताया कि काशी-तमिल संगमम ज्ञान के विभिन्न पहलुओं-साहित्य, प्राचीन ग्रंथों, दर्शन, आध्यात्मिकता, संगीत, नृत्य, नाटक, योग, आयुर्वेद, हथकरघा, हस्तशिल्प के साथ-साथ आधुनिक नवाचार, व्यापारिक आदान-प्रदान, एजुटेक एवं अगली पीढ़ी की अन्य प्रौद्योगिकी आदि जैसे विषयों पर केंद्रित होगा। इन विषयों पर विचार- गोष्ठी, चर्चा, व्याख्यान, कार्यशाला आदि आयोजित किए जाएंगे, जिसके लिए संबंधित विषयों के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह आयोजन छात्रों, विद्वानों, शिक्षाविदों, पेशेवरों आदि के लिए भारतीय ज्ञान प्रणाली, शिक्षा एवं प्रशिक्षण से संबंधित कार्यप्रणालियों, कला एवं संस्कृति, भाषा, साहित्य आदि से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में सीखने का एक अनूठा अनुभव होगा।
इन चर्चाओं का लाभ ज्ञान के क्षेत्रों से जुड़े वास्तविक साधकों को मिलना चाहिए। इसे सुनिश्चित करने के लिए यह प्रस्ताव किया गया है कि विशेषज्ञों के अलावा, तमिलनाडु के विभिन्न हिस्सों से विभिन्न समूहों के आम साधकों को वाराणसी और इसके आसपास के क्षेत्र की 8 दिवसीय यात्रा के लिए लाया जाए। संभावित तौर पर छात्रों, शिक्षकों, साहित्यकारों (लेखकों, कवियों, प्रकाशकों), सांस्कृतिक विशेषज्ञों, पेशेवरों (कला, संगीत, नृत्य, नाटक, लोक कला, योग, आयुर्वेद), उद्यमियों, (एसएमई, स्टार्ट-अप) व्यवसायी, (सामुदायिक व्यवसाय समूह, होटल व्यवसायी,) कारीगर, विरासत संबंधी विशेषज्ञ (पुरातत्वविद, टूर गाइड, ब्लॉगर आदि) आध्यात्मिक, ग्रामीण, विभिन्न संप्रदाय से जुड़े संगठन) सहित 12 ऐसे समूहों की पहचान की गई है। ये लोग शैक्षणिक कार्यक्रमों में भाग लेंगे, उसी क्षेत्र से जुड़े वाराणसी के लोगों के साथ बातचीत करेंगे और वाराणसी एवं उसके आसपास के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करेंगे।