भारतीय नौकरशाही का आईना है ‘डिकोडिंग इंडियन बाबूडम’

भारतीय नौकरशाही का आईना है ‘डिकोडिंग इंडियन बाबूडम’

नयी दिल्ली, देश में आम आदमी के नजरिये से नौकरशाही या शीर्ष प्रशासनिक प्रणाली को समझने के एक दिलचस्प एवं खोजपूर्ण पुस्तक ‘डिकोडिंग इंडियन बाबूडम’ आयी है जिसमें आम आदमी के नजरिये से सुशासन के 15 सूत्र सुझाए गये हैं और कुछ क्रांतिकारी नवान्मेषी अधिकारियों के अनुभव एवं उपलब्धियों को भी साझा किया गया है।

देश की एक जानी मानी समाचार एजेंसी में कार्यरत लिए वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी श्रीवास्तव ने इस पुस्तक को कलमबद्ध किया है। श्री श्रीवास्तव एक दशक से अधिक समय से कार्मिक, प्रशिक्षण, लोकशिकायत विभाग को कवर करते आ रहे हैं और इसी लिए पुस्तक की प्रामाणिकता असंदिग्ध है।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के निवासी श्री श्रीवास्तव का कहना है कि भारतीय अफ़सरशाही के बारे में लोगों के दिमाग में एक मज़बूत अवधारणा है कि वह स्वभाव से भ्रष्ट है, दंभपूर्ण और टालमटोल करने वाली है। नए भारत के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने और अच्छा एवं प्रभावी शासन सुनिश्चित करने के मकसद से लिखी गयी इस पुस्तक में प्रशासन के इन्हीं विकारों को दूर करने के लिए उनसे “मिशन-मोड” में कार्य की अपेक्षा निहित है। पुस्तक में शासन और अफ़सरशाही से संबंधित कई गतिरोधों और संभावित समाधानों पर प्रकाश डाला गया है जो अपनी तरह की अनूठी पहल है। सिविल मंत्रालयों/विभागों में सशस्त्र बलों के कर्मियों की प्रतिनियुक्ति, निचले और मध्यम स्तर के कर्मचारियों के प्रशिक्षण और शासन में नवान्वेषण को प्रोत्साहित करना, उन संभावित समाधानों में शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि यह पुस्तक उन लोगों के लिए अधिक उपयोगी हो सकती है जो सिविल सेवा में जाना चाहते हैं या देश की प्रशासनिक व्यवस्था में रुचि रखते है। देश में अच्छे और प्रभावी शासन को प्राप्त करने के लिए सुझाए गए ‘15 सूत्र’ देश के प्रशासन में व्यापारियों/पेशेवरों और निवेशकों के विश्वास को बढ़ाकर निवेश लाने में उपयोगी हो सकते हैं।

लेखक का कहना है कि प्रशासन की सबसे बड़ी पहचान लालफीताशाही दरअसल भ्रष्टाचार की कारक है और नागरिकों और व्यापारियों के लिए यह काफी निराशाजनक स्थिति है। लालफीताशाही वास्तविक है और यह किसी न किसी रूप में सभी सरकारी विभागों में मौजूद है। श्री श्रीवास्तव अपनी पुस्तक में इस लालफीताशाही को समाप्त करने के लिए उपयुक्त समाधान भी बतलाते है।

इस पुस्तक में संपत्ति रजिस्ट्री कार्यालयों, क्षेत्रिय परिवहन कार्यालय (आरटीओ), नागरिक प्राधिकरणों में कथित संगठित भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और बड़ी संख्या में ‘लोक सेवकों’ की लोगों के प्रति गैर-पेशेवर दृष्टिकोण के संभावित कारणों को इंगित किया गया है। नौकरशाहों में लोगों के विश्वास की कमी और उनके असहयोग और अक्षमता की लोगों की चिरस्थायी गाथा को रेखांकित करते हुए लेखक ने नवाचार, पेशेवराना रवैय एवं डिज़ीटाइज़ेशन की कमी, लालफीताशाही, परिणाम की बजाए काम की प्राथमिकता तथा ‘वातानुकूलित शासन’ जैसे महत्वपूर्ण विषयों को पुस्तक में सूचीबद्ध किया है।

वह आम आदमी के नजरिए से देश की प्रशासनिक व्यवस्था, सरकारी भर्ती एजेंसियों और लोकपाल जैसे भ्रष्टाचार विरोधी प्रहरी की प्रभावशीलता का भी अपनी पुस्तक के माध्यम से आकलन करते हैं।

पुस्तक में लेखक ने कहा है कि सुशासन सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास किए जाने चाहिए। लोगों की जरूरतों का मूल्यांकन और पुनर्मूल्यांकन समय-समय पर किया जाना चाहिए ताकि सेवाओं की त्वरित डिलीवरी और लोगों की आकांक्षाओं से मेल खाने वाली व्यवस्था देश में सुनिश्चित की जा सके। उनका मानना है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को विश्व स्तरीय शासन प्रणाली हासिल करने का पूरा अधिकार है और हमारे ‘अफ़सरशाह’ यह देने में सक्षम हैं।

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