प्रयागराज में बाढ़ से नाविकों की आजीविका पर संकट
प्रयागराज, तीर्थराज प्रयाग में गंगा और यमुना में लगातार बढ़ रहे जलस्तर के कारण नाव चलाकर अपने परिवार की दो जून की रोटी की व्यवस्था चलाने वाले करीब दो हजार नाविकों के सामने रोजी-रोटी का संकट आन पड़ा है।
संगम में पर्यटकों को सैर करा के नाविक अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी रोटी का जुगाड़ करते थे लेकिन अब उन पर आर्थिक तंगी का बोझ आ पड़ा है। प्रयागराज में दोनों नदियां उफान पर है। पूरा क्षेत्र जलमग्न हो गया है। बाढ़ के कारण पर्यटकों के अभाव में नाविकों को आर्थिक समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है। नाविकों ने अपने नाव लेटे हनुमान मंदिर से पुराने रेलवे पुल तक बांध दिए हैं। नाविकों के साथ स्नानार्थियों को फूल- माला और प्रसाद बेचने वाली महिलाओं के सामने भी रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गयी है।
प्रयागराज नाविक संघ अध्यक्ष पप्पू लाल निषाद का कहना है कि गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी पर्यटक आते हैं। पर्यटक जहां गंगा, यमुना नदियों में सैर के लिए नौका विहार करते हैं वहीं श्रद्धालु बोट से भी संगम स्नान की इच्छा व्यक्त करते हैं। इससे स्थानीय नाविकों की रोजी-रोटी का सहारा रहता है लेकिन बाढ़ से नाविकों के समक्ष आर्थिक समस्या उत्पन्न हो गई है।
निषाद ने बताया कि गंगा और यमुना इस समय अपने रौद्र रूप में हैं। इन्हीं नदियों के सहारे तीन हजार नाविकों के परिवार का खर्च चलता है। गंगा और यमुना हमारे लिए जीवनदायिनी हैं, इन्हीं के सहारे परिवार की रोजी रोटी चलती है। बाढ़ के चलते प्रशासन ने नदी में नाव चलाने पर प्रतिबंध लगा दिया है जिससे नाविकों के आय के साधन पूरी तरह से प्रभावित हो गया है।
उन्होंने बताया कि नाविकों के पास नौकायन के अलावा कोई दूसरा गुण नहीं है कि इस दौरान वह कोई दूसरा काम करने लगे। बाढ़ के दौरान आपदा के चलते कई दिनों तक नाव का संचालन प्रतिबंधित रहता है। ऐसे में परिवार चलाना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने बताया कि आम दिनों में नाविक 500 रूपए प्रतिदिन कमा लेते हैं लेकिन दोनों नदियों के उफान से एक भी रूपए की आमदनी नहीं हो रही है।
पप्पू निषाद ने बताया कि तीज त्यौहार और स्नान पर्व पर अच्छी आय हो जाती जिससे पूरे साल का खर्चा निकल जाता है। उन्होंने बताया कि आने वाले वर्ष में महाकुंभ में नाविकों को अच्छी कमाई होने की उम्मीद है। पूरे साल श्रद्धालुओं को स्नान कराने और पर्यटकों को पर्यटन का आनंद दिकर कमाई करते हैं लेकिन बारिश और बाढ़ के दिनों में सभी बेरोजगार हो जाते हैं।
संगम तट पर माला-फूल बेचने वाली राधा का कहना है कि घाट पर अधिक बिक्री होती थी लेकिन बाढ़ के कारण अब उन्हें बंधवा पर खिसक कर आना पड़ गया है। स्नानार्थी भी कम हो गए। अब ताे 150 रूपए दिन भी में कमाना भारी पड़ रहा है। बाढ़ से पहले आराम से 300 रूपए कमाती थी, मेला अच्छा होने पर 500 रूपया भी कमा लेते थे।