कानपुर में कांग्रेस और भाजपा में हैं कांटे की टक्कर
कानपुर, उत्तर भारत के प्रमुख औद्योगिक शहरो में शुमार कानपुर के वाशिंदे 13 मई को एक बार फिर अपने नये खेवनहार की तलाश में घरों से निकलेंगे।
यहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवार रमेश अवस्थी और इंडिया समूह के कांग्रेस प्रत्याशी आलोक मिश्रा के बीच सीधी टक्कर है। रमेश अवस्थी शहर के लिये नया चेहरा है वहीं आलोक मिश्रा पिछले कुछ सालों से दूरसंचार माध्यम और पोस्टर बैनर के जरिये लोगों के बीच अपनी पहचान बनाये हुये हैं। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता से भाजपा प्रत्याशी कांग्रेस को कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं।
वर्ष 1952 में अस्तित्व में आयी कानपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस छह बार और भाजपा पांच बार जीत का परचम लहरा चुकी है और श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में पिछले दस साल से यहां भाजपा का कब्जा है मगर मौजूदा चुनाव में कांग्रेस सत्ताधारी दल के लिये बड़ी चुनौती बन कर उभरी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ,उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष समेत भाजपा के कई कद्दावर नेता यहां का दौरा कर रमेश अवस्थी के लिये वोट की अपील कर चुके हैं। श्री मोदी के पिछले दिनो यहां हुये रोड शो में भारी भीड़ उमड़ी थी वहीं शुक्रवार को जीआईसी मैदान में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की जनसभा में भी उमड़ी भीड़ ने दर्शा दिया था कि यहां कांटे की टक्कर है और पलड़ा किसी भी तरफ झुक सकता है।
छोटे मझोले दुकानदार,उद्यमी,मजदूर,किसान औरयुवा महंगाई और बेरोजगारी से परेशान है मगर दूसरी तरफ लोगों का यह भी मानना है कि पिछले दस सालों में दुनिया में भारत की छवि निखरी है और अयोध्या,काशी समेत अन्य तीर्थस्थलों की दशा में उल्लेखनीय सुधार हुआ है वहीं इंडिया समूह के पास प्रधानमंत्री पद के लिये कोई चेहरा भी फिलहाल नहीं है।
इस बीच कांग्रेस का दावा है कि वह चुनाव जीते तो कानपुर को उसका पुराना औद्योगिक स्वरुप वापस दिलायेंगे मगर 1999 से 2014 के बीच यह सीट कांग्रेस के पास ही थी मगर यहां न तो बंद मिलें चलीं और न ही विकास का पहिया तेजी से दौड़ा। पिछले दस सालों में भाजपा राज की बात करें तो भी यहां की बंद पड़ी औद्योगिक इकाइयों के पुनरुद्धार की दिशा में कोई उल्लेखनीय कदम नहीं उठाये गये हैं और न ही जरीब चौकी से लेकर कल्याणपुर तक बिछी रेलवे क्रासिंग को हटाया जा सका है जिससे शहर की एक बड़ी आबादी आये दिन लगने वाले जाम से प्रभावित होती है।
भाजपा के शासनकाल में यहां मेट्रो रेल का काम तेजी से चल रहा है तो सड़कों की हालत भी पहले से बेहतर हुयी है। पेयजल की समस्या में कोई खास सुधार नहीं हुआ है लेकिन प्रदेश के अन्य शहरों की तरह बिजली आपूर्ति की स्थिति काफी बेहतर हुयी है मगर जन समस्यायों से जुड़े इन मुद्दों की बजाय शहर के गलियों और चौराहों पर चर्चा के केंद्र में बस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। एक तबका नहीं चाहता कि मोदी सरकार केंद्र की सत्ता में आये मगर दूसरा पक्ष प्रत्याशी की बात न करके सिर्फ श्री नरेन्द्र मोदी के लिये मतदान केंद्र की ओर रुख करने को बेकरार है।
पिछले चुनाव की तरह इस बार भी प्रत्याशियों की जीत हार का फैसला करीब 36 फीसदी दलित एवं पिछड़े वर्ग का मतदाता करेगा हालांकि 18 फीसदी ब्राहृमण और 15 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं के अलावा छह फीसदी क्षत्रिय और करीब 19 फीसदी पंजाबी और सिंधी अल्पसंख्यक भी इस चुनाव में अपनी अहम भूमिका अदा करेंगे।
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के सत्यदेव पचौरी ने कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल को डेढ़ लाख से अधिक वोटों से हराया था। 2014 में भाजपा यहां कांग्रेस के डेढ़ दशक का तिलिस्म तोड़ने में सफल रही थी जब भाजपा उम्मीदवार डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल को दो लाख 29 हजार से अधिक वोटों से हराया था।
कभी चिमनियों के शहर के रुप में विख्यात कानपुर के लोगों ने प्रमुख राजनीतिक दलों के अलावा निर्दलीय को भी विकास के वादे के साथ सिर आंखों पर बैठाया है, तभी तो यहां 1957 से लेकर 1971 के बीच निर्दलीय प्रत्याशी एमएम बनर्जी ने जीत दर्ज की थी।1977 में यहां जनता पार्टी के मनोहर लाल सांसद चुने गए। 1980 में आरिफ मोहम्मद खान तो 1984 में नरेश चंद्र चतुर्वेदी विजयी हुए। 1989 के चुनाव में सीपीएम की सुभाषिनी अली यहां से सांसद चुनी गईं। 1991 से साल 1998 तक भाजपा के जगतवीर सिंह द्रोण और 1999 से 2009 आम चुनाव तक कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल ने जीत दर्ज की।
कानपुर नगर के लोगों ने हालांकि प्रदेश की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को लोकसभा चुनाव में कभी तरजीह नहीं दी।बसपा से कुलदीप भदौरिया मैदान में हैं।
कानपुर संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभाओं में से किदवई नगर और गोविंद नगर में भाजपा का कब्जा है जबकि आर्यनगर,कानपुर कैंट और सीसामऊ सीट पर सपा के विधायक हैं।