देश का रक्षा तंत्र पहले से कहीं अधिक मजबूत: राजनाथ सिंह
नयी दिल्ली, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को कहा कि मोदी सरकार देश के रक्षा तंत्र को भारतीयता की भावना के साथ विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है जिससे यह पहले से कहीं अधिक मजबूत हुआ है ।
राजनाथ सिंह ने यहां एक निजी मीडिया समूह के कार्यक्रम में मौजूदा और पिछली सरकार की कार्य प्रणाली में अंतर का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्तमान सरकार लोगों की क्षमताओं में दृढ़ता से विश्वास करती है, जबकि पहले सत्ता में रहने वाले लोग अपनी क्षमताओं को लेकर कुछ हद तक सशंकित थे।
उन्होंने रक्षा विनिर्माण में ‘आत्मनिर्भरता’ को बढ़ावा देने को सबसे बड़ा बदलाव बताया और कहा कि इससे रक्षा क्षेत्र को एक नया आकार दिया जा रहा है । उन्होंने आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए रक्षा मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदमों का जिक्र किया जिनमें उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना , सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियों की अधिसूचना, पूंजीगत खरीद बजट का 75 प्रतिशत घरेलू उद्योग के लिए आरक्षित करना, आयुध निर्माणी बोर्ड का निगमीकरण , रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (आईडीईएक्स), आईडीईएक्स प्राइम, आईडीईएक्स (एडीआईटीआई) और प्रौद्योगिकी विकास निधि (टीडीएफ) के साथ नवीन प्रौद्योगिकियों का विकास शामिल है।
राजनाथ सिंह ने इन निर्णयों के रक्षा क्षेत्र पर सकारात्मक प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वार्षिक रक्षा उत्पादन, जो 2014 में लगभग 40,000 करोड़ रुपये था, अब रिकॉर्ड 1.10 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया है। रक्षा निर्यात आज 16,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जो नौ-दस साल पहले मात्र 1,000 करोड़ रुपये था। वर्ष 2028-29 तक 50,000 करोड़ रुपये का निर्यात हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है।
उन्होंने कहा, “ केंद्र में एक शक्तिशाली नेतृत्व के कारण हमारी सेनाओं में दृढ़ इच्छा शक्ति है। हम जवानों का मनोबल ऊंचा रखने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं. वे भारत पर बुरी नजर डालने वाले किसी भी व्यक्ति को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सुसज्जित, सक्षम और तैयार हैं।’
राजनाथ सिंह ने कहा कि सरकार ने युवाओं पर भरोसा करते हुए नवाचार को बढ़ावा दिया और निजी क्षेत्र को आदर्श वातावरण प्रदान किया है।
रक्षा मंत्री ने जोर देकर कहा कि जब प्रौद्योगिकी की बात आती है, तो विकासशील देशों के पास दो विकल्प होते हैं ‘नवाचार’ और ‘नकल’ – और सरकार देश को अनुयायी के बजाय प्रौद्योगिकी निर्माता बनाने पर विशेष जोर दे रही है। विकसित देशों की प्रौद्योगिकी की नकल करना उन लोगों के लिए गलत नहीं है जिनकी नवाचार क्षमता और मानव संसाधन नयी प्रौद्योगिकियों के उत्पादन के लिए आवश्यक स्तर तक नहीं पहुंचे हैं। उन्होंने कहा कि यदि कोई देश दूसरे देशों की तकनीक की नकल करता है, तब भी वह पुरानी तकनीक से आगे बढ़ता है। समस्या यह है कि व्यक्ति नकल का आदी हो जाता है और दोयम दर्जे की तकनीक का आदी हो जाता है। यह उन्हें विकसित देश से 20-30 साल पीछे रहने के लिए मजबूर करता है।