‘लहसुन’ से धोखा खाये किसान कर रहे हैं तौबा
‘लहसुन’ से धोखा खाये किसान कर रहे हैं तौबा
इटावा, भोजन का स्वाद बढ़ाने के साथ साथ हृदय रोग समेत कई जटिल बीमारियो के इलाज में अहम भूमिका अदा करने वाले लहसुन की कीमतों में आयी भारी गिरावट से हतप्रभ किसान दूसरी फसलों की ओर रूख करने लगे हैं।
उत्तर प्रदेश के बाजारों में लहसुन की कीमत औंधे मुंह गिरी है। आमतौर पर हमेशा मुनाफे की फसल साबित होने वाले लहसुन को किसान पांच रूपये किलो तक में बेचने को मजबूर हैं। कीमतों में आई अप्रत्याशित गिरावट से लहसुन की पैदावार करने वाले किसानों की जान सांसत में पड़ गई है। खासकर जिन किसानों ने कर्ज लेकर फसल तैयार की थी, उनकी हालत ज्यादा खराब है। किसानों का कहना है कि इस साल तो लागत निकलना ही मुश्किल लग रहा है। किसानों की माने तो कभी 30 हजार रुपये प्रति कुंतल तक बिकने वाला लहसुन मात्र 500 से लेकर एक हजार रुपये प्रति कुंतल बिक रहा है।
किसान व लहसुन कारोबारी भाव में भारी गिरावट के पीछे अन्य प्रांतों में लहसुन की बंपर पैदावार मान रहे हैं। दाम में गिरावट से लहसुन किसान भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं। दो साल पहले यही लहसुन 15 से 20 हजार रुपये प्रति कुंतल बिका था लेकिन इस वर्ष लहसुन को माटी मोल बिकना किसानों के लिए सिरदर्द बन गया है।
भाव के अभाव मे इटावा जिले के लहसुन किसान अब दूसरी खेती की ओर से मुड़ना शुरू हो गये है। किसानो को उनकी फसल का वाजिब भाव के ना मिलने के कारण ताखा क्षेत्र में लहसुन का रकबा लगातार घटता जा रहा है। पिछले सात वर्ष में लहसुन पैदावार का रकबा 4540 हेक्टेयर घट गया है। पहले 5000 से अधिक हेक्टेयर में लहसुन की खेती होती थी। अब केवल 4540 हेक्टेयर में ही किसान लहसुन की खेती कर रहे हैं।
इलाकाई किसानों की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार एक बीघे में मजदूरी समेत करीब 10 हजार रुपये लागत आती है। प्रति बीघा तीन कुंतल उपज होती है। थोक मंडी में भाव पांच रुपये प्रति किलो के हिसाब से ही मिल पा रहा है। पिछले वर्ष लहसुन की उपज अच्छी हुई है। भाव तीन हजार रुपये प्रति क्विंटल से शुरू हुए मगर दिन पर दिन घटते ही गए।
इटावा में करीब दस हजार हेक्टेयर लहसुन का रकबा है। हर वर्ष ही जिले में लहसुन की बंपर पैदावार होती है लेकिन इस वर्ष हालात प्रतिकूल हैं। राजस्थान, पश्चिम बंगाल के साथ ही आंध्र प्रदेश में हुई लहसुन की बंपर पैदावार के कारण यहां के किसानों को अब खरीददार नहीं मिल रहे हैं। लहसुन के भाव में आई गिरावट का कारण यह भी है कि कोलकाता, नागपुर, रायपुर, हैदराबाद, कानपुर, रांची, अकोला, बिहार, दुर्गापुर जैसी मंडियों में इस बार यहां के लहसुन की डिमांड कम है। किसानों की माने तो अप्रैल माह में लहसुन का मूल्य तीन हजार प्रति कुंतल था। तब किसानों को भाव बढ़ने का इंतजार था।
लहसुन किसान जमील अहमद कहते हैं कि जिसने लहसुन की फसल कर्ज लेकर तैयार की थी, वह किसान तो इस बार बर्बादी की कगार पर है। क्योंकि पिछले साल भी भाव कम होने से किसानों को घाटा उठाना पड़ा था। फिलहाल भाव बढ़ा तो ठीक नहीं तो भगवान ही मालिक है। किसान तिलक सिंह यादव के मुताबिक पानी, मजदूरी के दाम बढ़ने से लागत तो बढ़ी है, लेकिन लहसुन 500 से लेकर हजार रुपये प्रति कुंतल बिक रहा है। इस कारण फसल की लागत भी नहीं निकल पा रही है। ऐसे में किसान के सामने दो वक्त की रोटी लाले पड़ गए हैं।
लहसुन कारोबारी प्रदीप गुप्ता कहते हैं कि मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सहित राजस्थान, पश्चिम बंगाल व आंध्र प्रदेश की लहसुन मंडियों में लहसुन की आवक बढ़ी है। साथ ही इस समय लहसुन में नमी ज्यादा होने के कारण लहसुन मंडियों में पहुंचते-पहुंचते काला पड़ने की संभावना है। भाव में गिरावट का यही कारण हैं। लहसुन व्यापारी विनोद कुमार ने कहा कि बाहरी मंडियों में लहसुन की डिमांड कम हुई है। साथ ही निर्यात में भी कमी आई है। यही कारण है लहसुन के खरीददार कम हुए हैं और उसके दामों में गिरावट दर्ज की गई है। अन्य प्रांतों में भी लहसुन की बंपर पैदा हुई है।
प्रदेश में लहसुन की प्रमुख मंडियां घिरोर, कुरावली, भोगांव, ऊसराहार, उमरैन, कानपुर आदि हैं। इन मंडियों से लहसुन पश्चिम बंगाल के कोलकाता, दुर्गापुर, महाराष्ट्र के नागपुर, अकोला, मुंबई, झारखंड की बोकारो, रांची, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की लहसुन मंडियों सहित बंगलूरू, दिल्ली आदि स्थानों पर भेजा जाता है।
झारखंड बोकारो के व्यापारी हीरालाल बताते है कि बीते वर्षों में लहसुन की कीमत आसमान छूती रही थी, जिसकी वजह से अबकी बड़े भू- भाग पर लहसुन की फसल बोई गई। लहसुन की मंदी का यही कारण रहा। कोलकाता,नागपुर और बिहार की मंडी में लहसुन का कारोबार करने वाले कारोबारी विनोद गुप्ता बताते हैं कि मध्य प्रदेश की मंडियों में लहसुन की आवाक बड़े स्तर पर हो रही है इसी वजह से दामों में तेजी नहीं आ पा रही है ।
नगला हंसे निवासी किसान रामवीर यादव बताते हैं कि उनके गांव में लगभग 500 बीघा के करीब खेतों में लहसुन की फसल हुई थी इससे सैकड़ों किसान प्रभावित हुए हैं सरकार को किसानों के दर्द को समझना चाहिए। किसान रामनरेश शाक्य का कहना है कि ठीक भाव न मिलने के कारण उन्होंने अपने खेतों में ही पूरी फसल का लहसुन फेंक दिया। ताखा क्षेत्र में लहसुन की फसल ही सबसे प्रमुख हैं। किसान की आर्थिक स्थिति भी इस फसल पर निर्भर करती है। जबकि लहसुन का भाव गिरता है तो किसान परेशान होता है।