जन्माष्टमी में राधारानी की नगरी वृंदावन हुई कृष्णमय

मथुरा, राधारानी की नगरी वृन्दावन में कान्हा की जन्माष्टमी मनाने के लिए मंगलवार के तीर्थयात्रियों का हजूम इकट्ठा हो गया है। यहां के दो प्रमुख मन्दिरों में जन्माष्टमी दिन में मनाई जा रही है। जिला प्रशासन को इस भीड़ को नियंत्रित करने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शैलेष कुमार पाण्डे ने बताया कि आज वृन्दावन में लाखों की भीड़ इकट्ठा हुई थी हालांकि कहीं से किसी भी अप्रिय घटना का समाचार नही है। राधा दामोदर मन्दिर में सुबह सबसे पहले सेवायत आचार्य यमुना जल लेकर आए तथा अभिषेक की तैयारियां की जाने लगीं। कुछ समय बाद ही वैदिक मंत्रों के मध्य अभिषेक शुरू हुआ तो मन्दिर के अन्दर भीड़ बढ़ने लगी तथा एक घंटे बाद ही मन्दिर में इतनी भीड़ इकट्ठा हो गई कि तिल रखने भर को भी जगह नही थी।

इस मन्दिर में 27 मन दूध, दही, घी, खंडसारी , शहद और औषधियों से अभिषेक शुरू हुआ तो शंखध्वनि हुई तथा घंटे घड़ियाल बजने लगे। वातावरण घार्मिकता से इतना भर गया कि कुछ तीर्थयात्रियों के भाववश नेत्र सजल हो गए। लगभग तीन घंटे से अधिक समय तक चले अभिषेक के बाद ठाकुर को गर्भगृह में पोशाक धारण कराई गई। उधर चरणामृत एवं ठाकुर के प्रसादी वस़्त्र का तीर्थयात्रियों एवं वृन्दावनवासियों में वितरण शुरू हुआ।

वृन्दावनवासी इस चरणामृत को गृहण करने के बाद ही व्रत के नियम की शुरूवात करते हैं।आज मन्दिर के सामने चरणामृत लेने वालों की बहुत लम्बी लाइन लगी हुई थी।
मन्दिर के सेवायत दिनेशचन्द्र गोस्वामी ने बताया कि ’’आज के दिन लाला को नजर लगने से बचाने के लिए उन्हें न केवल काजल लगाया गया बल्कि सभी सभी सेवायतों ने लाला की दीर्घ आयु के लिए उन्हें आशीर्वाद भी दिया और कहा ’’माई तेरो चिर जीवे गोपाल’’। इस मन्दिर के जन्माष्टमी कार्यक्रम की दूसरी विशेषता यह थी कि जहां कुछ समय पहले ही लाला के दीर्घ आयु होने का सेवायतों ने आशीर्वाद दिया वहीं कुछ समय बाद ही सेवायतों ने ठाकुर से प्रार्थना की कि वे उन्हें शक्ति दे कि उनके श्रीचरणों में उनका ध्यान हमेशा लगा रहे।

नियमित राजभोग के बाद ठाकुर को छप्पन भोग लगाया गया तथा बाद में यहीं भोग प्रत्येक तीर्थयात्री एवं भक्त को देना सुनिश्चित किया गया। इस मन्दिर में दिन में जन्माष्टमी मनाए जाने के कारण रात 12 बजे कोई कार्यक्रम नही होता।

राधा दामोदर मन्दिर में भी आज दिन में जन्माष्टमी मनाई गई। इन दोनो मन्दिरों के पूर्व गोस्वामियों ने दिन में जन्माष्टमी मनाने की परंपरा इसलिए डाली थी कि वास्तव में जन्माष्टमी एक प्रकार से लाला की सालगिरह है तथा रात में जगाकर लाला का जन्मदिन मनाना ठीक नही है।

राधा दामोदर मन्दिर में भी जन्माष्टमी दिन में निराले तरीके से मनाई गई। ।राधा दामोदर, राधा वृन्दावन चन्द्र, राधा माधव एवं राधा छैलचिकन के अभिेषेक विगृह को सबसे पहले गर्भगृह से बाहर निकालकर जगमोहन में विशेष पात्र में उन्हें विराजमान किया गया तथा इनके साथ गिर्राज महराज को गिर्राज शिला के माध्यम से विराजमान किया गया।इस दौरान शंखध्वनि होती गई घंटे घड़ियाल बजते रहे तथा वैदिक मंत्रो का पाठ भी होता रहा। इस मन्दिर में चारो विगृह बाहर निकालने का भाव यह है कि जीव गोस्वामी अपने ठाकुर राधा दामोदर, कृष्णदास कविराज गोस्वामी अपने आरााध्य राधा वृन्दावन चन्द्र, जैदेव गोस्वामी अपने ठाकुर राधा माधव , भूगर्भ गोस्वामी अपने आराध्य राधा छैलचिकन और सनातन गोस्वामी अपने आराध्य गिर्राज शिला के माध्यम से गिर्राज जी का पंचामृत अभिषेक कर रहे हैं उनके इस कार्य को मन्दिर के वर्तमान सेवायतगण सम्पन्न करा रहे हैं।

इस मन्दिर में पांच विगृहों का अभिषेक किया जाता है इसलिए यहां भी अभिषेक कार्यक्रम वैदिक मंत्रों के मध्य कई घंटे तक चलता है।
मन्दिर के सेवायत आचार्य कृष्ण बलराम गोस्वामी ने बताया कि इस मन्दिर में होनेवाले अभिषेक कार्यक्रम में उन भक्तों की सेवा भी स्वीकार कर ली गई जो ठाकुर के अभिषेक के लिये दूध दही या पंचामृत की अन्य सामग्री लाए। उनके द्वारा लाई सामग्री को अभिषेक की सामग्री में उनकी उपस्थिति में शामिल कर लिया गया। अभिषेक के दौरान घंटे घड़ियाल एवं वैदिक मंत्रों की ध्वनि ने वातावरण को भक्ति रस से सराबोर कर दिया।अभिषेक के बाद चरणामृत को मन्दिर में उपस्थित भक्तों में वितरित किया गया ।

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