गौशालाओं में उपयोगी उपकरणों पर सब्सिडी का विचार करेगी सरकार

गौशालाओं में उपयोगी उपकरणों पर सब्सिडी का विचार करेगी सरकार

नयी दिल्ली, सरकार गौशालाओं में उपयोग किये जाने वाले उपकरणों पर कृषि यंत्रों की तरह सब्सिडी देने पर विचार करेगी ।

केंद्रीय पशु पालन ,मत्स्य पालन और डेयरी विकास मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने शु्क्रवार को ‘प्रोजेक्ट अर्थ और इनेक्टस आईआईटी दिल्ली’ के छात्रों को गाय के गोबर से जलावन वनाने वाली “गो काश्त” मशीन सौंपने के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि सरकार गोशालाओं में उपयोग किये जाने वाले उपकरणों पर कृषि यंत्रों की तरह सब्सिडी देने पर गंभीरता से विचार करेगी।

श्री रुपाला ने कहा कि गौशालाओं के गोबर और अवशिष्ट पदार्थो के वैज्ञानिक ढंग से उपयोग किये जाने पर उसे इतनी आय होगी कि उसे बाहर से किसी मदद की जरुरत ही नहीं होगी । उन्होंने कहा कि गौशालाओं के उत्पाद की आय से ही उसका संचालन किया जाना चाहिए ।

पशु पालन मंत्री ने कहा कि गोबर से बने जलावन का उपयोग शवों के दाह संस्कार में किया जाता है तो इससे लकड़ी की बचत होगी और पेड़ भी नहीं कटेंगे । इसके साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा भी की जा सेकेगी । राष्ट्रीय गौधन महासंघ की ओर से छात्रों को गोबर से जलावन बनाने वाली मशीन दी गयी है ।

राष्ट्रीय गौधन महासंघ के अध्यक्ष विजय खुराना ने इससे पहले श्री रुपाला से गौशालाओं में उपयोग किये जाने वाले उपकरणों पर कृषि यंत्रों की तरह सब्सिडी दिये जाने की मांग की और कहा कि पशुपालन कृषि कार्य से जुड़ा है और इसके कारण कृषि क्षेत्र को मिलने वाली सहायता गौशालाओं को मिलनी ही चाहिए । उन्होंने कहा कि सब्सिडी मिलने पर करीब 19 हजार गौशालाओं में उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है ।

‘गो गाश्त’ मशीन का इस्तेमाल ईंधन के तौर पर जलाने के लिए लट्ठे के आकार का गोबर का जलावन बनाने के लिए किया जा सकता है। इसके लिए गोबर और धान के बुरादे को मशीन में डाला जाता है, मशीन इस बुरादे का चूरा और इसका मिश्रण बनाकर इसे लट्ठे के आकार में ढालती है। इसके बाद इन लट्ठों को धूप में सुखाया जाता है और बाद में अलग-अलग कार्य के लिए ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

यह मशीन प्रति दिन 3000 किलो गोबर का इस्तेमाल कर 1500 किलो गोबर के लट्ठे का उत्पादन कर सकती है, जिनका इस्तेमाल पांंच से सात शवों का दाह-संस्कार करने के लिए लकड़ी के स्थान पर किया जा सकता है और इस तरह हर दाह-संस्कार में जलाए जाने वाले पेड़ों को बचाया जा सकता है। इसका एक और अर्थ यह है कि इससे गौशालाओं को हर महीने 150 हजार से लेकर 170 हजार किलो गोबर का निपटान करने में मदद मिलेगी।

गोबर आधारित लट्ठे बनाने वाली यह मशीन गौशालाओं को अपने कचरे के निपटान की समस्या को दूर करने में सहायक होगी और जिस स्थान पर इस मशीन को लगाया जाएगा, वहां रहने वाले और आसपास के गांव के निवासियों के लिए यह रोजगार का एक अतिरिक्त स्रोत बनेगी। इसके साथ ही यह वनों की कटाई को कम करने में भी मदद करेगी।

इस तरह की मशीनों से दूध देना बंद कर चुकी गायों को भी आर्थिक गतिविधि में शामिल किया जा सकेगा और इस तरह गौशाला में रहने वाली सभी गायों की देखभाल के लिए धन पैदा किया जा सकेगा।

अर्थ संस्था के संस्थापक आयुष सुल्तानियां ने बताया कि इस मशीन का उपयोग दिल्ली बवाना की एक गौशाला में किया जायेगा । उन्होंने बताया कि वर्तमान में गोबर से 18 उत्पाद तैयार कर उसे बाजार में उपलब्ध कराया जा रहा है जिनमें भगवान की मूर्तियां , हवन सामग्री , दीपक , धूप ,अगरबत्ती आदि प्रमुख है । इसके अलावा कुछ अन्य उत्पाद बनाने को लेकर अनुसंधान किया जा रहा है ।

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