वृन्दावन के सप्त देवालयों में मची हुई है खिचड़ी महोत्सव की धूम
मथुरा, उत्तरप्रदेश की ब्रजभूमि में एक ओर कड़ाके की ठंड पड़ रही है तो दूसरी ओर इस ठंड से ठाकुर को बचाने के लिए मन्दिरों में खिचड़ी महोत्सव की धूम मची हुई है।
ब्रज के अधिकांश मन्दिरों में ठाकुर की सेवा बालस्वरूप में होती है इसलिए जिस प्रकार से बच्चे का ख्याल मौसम के परिवर्तन पर किया जाता है वैसे ही मन्दिरों में भी व्यवस्था की जाती है। जहां वृन्दावन के प्राचीन सप्त देवालयों में खिचड़ी महोत्सव की शुरूवात मार्गशीर्ष माह यानी अगहन शुक्ल पक्ष की द्वादसी से शुरू होती है वही बांकेबिहारी मन्दिर वृन्दावन में खिचड़ी महोत्सव की शुरूवात पौष माह की शुरूवात से ही हो जाती है। इसके विपरीत वृन्दावन के ही राधाबल्लभ मन्दिर में खिचड़ी महोत्सव की शुरूवात पौष माह की मकर संक्रांति से होती है। सभी मन्दिरों में यह महोत्सव एक महीने तक चलता है।
ब्रज के मन्दिरों का खिचड़ी महोत्सव एक प्रकार से ठाकुर की शीतकालीन सेवा है। राधारमण मन्दिर के सेवायत आचार्य पद्मनाभ गोस्वामी ने बताया कि लाला को ठंढ से बचाने के लिए जहां गर्म पानी का प्रयोग उनके अभिषेक के लिए किया जाता है वहीं उन्हें हिना या केसर का इत्र लगाया जाता है। मोजे, टोपा और गर्म शाल धारण कराई जाती है। एक महीने तक चरण दर्शन बन्द रहते हैं।उन्होंने बताया कि लाला को ठंढ़ से बचाने के लिए उनके व्यंजनों में केशर का बहुत अधिक उपयोग किया जाता है। दाल चावल की खिचड़ी में लौंग, बड़ी इलाइची, तेजपात, काली मिर्च, मेवा तथा अन्य पदार्थों को मिलाया जाता है। खिचड़ी के साथ पापड़, सब्जियां, दही, अचार, कुलिया, खीर, मेवे के लड्डू, गर्म दूध, उर्द की दाल के लड्डू तथा अन्य विभिन्न व्यंजनों का उपयोग किया जाता है जिसे श्रंगार भोग के समय लाला को अर्पित किया जाता है।
उन्होंने बताया कि व्यंजन द्वादशी से ही कोयले की अंगीठी लाला के सामने रखी जाती है । अंगीठी चांदी की होती है। भाव की सेवा के अन्तर्गत राग सेवा भी मन्दिर में होती है जिसमें विभिन्न पदों का गायन राग मालकोस में होता है । राधा दामोदर मन्दिर के सेवायत आचार्य कृष्ण बलराम गोस्वामी ने बताया कि उनके मन्दिर में 27 दिसंबर से शुरू हुआ खिचड़ी महोत्सव 13 फरवरी तक यानी वसंत से एक दिन पहले तक चलेगा।
पहले दिन इसका स्वरूप अन्नकूट जैसा रहता है बाद मे मेवा , लौंग, बड़ी इलाइची ,जावित्री, काली मिर्च आदि ऐसे पदार्थ खिचड़ी में मिलाए जाते हैं जो लाला को गर्मी दे सकें।इसके साथ ही मेवे की मिठाइयां , बादाम का हलुआ, गोभी और बथुआ के पराठे , पापड़, दही ठाकुर को अर्पित की जाती है।
लाला ने रजाई ओढ़ना तथा गर्म कपड़े पहनना शुरू कर दिया है भोग में केसर का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है तथा लाला को रात में केसरयुक्त दूध दिया जाता है। लाला को ठंढ़ से बचाने के लिए उनके सामने चांदी की सिगड़ी रखी जाती है और लाला रजाई ओढ़ने लगते है।। राधा श्यामसुन्दर मन्दिर मेेंं मार्गशीर्ष महीने की शुरूआत से ही ठाकुर को गर्म जल से स्नान कराते हैं।
इस मन्दिर के सेवायत आचार्य कृष्णगोपालानन्द देव प्रभुपाद ने बताया इस मन्दिर में भी एक महीने तक खिचड़ी महोत्सव चलता है । उनका कहना था कि जहां सेवा नही है वहां भक्ति नही है। लाला की खिचड़ी लौंग, काली मिर्च, जावित्री आदि गर्म पदार्थों के साथ विभिन्न प्रकार की मेवा,दही बड़ा, पाप, नाना प्रकार की मिठाइयां, साग सब्जियां , बादाम का हलुआ तथा केशरयुक्त विभिन्न प्रकार के व्यंजन अर्पित किये जाते है और लाला को गर्म कपड़े धारण कराने के साथ साथ उनके सामने चांदी की सिगड़ी भी रखी जाती है। इसी प्रकार का खिचड़ी महोत्सव अन्य सप्त देवालयों में होता है । खिचड़ी का प्रसाद केवल श्रंगार भोग में ही अर्पित होता है पर इसका एक दाना भी पाने के लिए भक्त इसलिए लालाइत रहते हैं कि यह सेवा उनके आराध्य देव को ठंढ से बचाने के लिए की जाती है तथा इसका का एक दाना भी मोक्ष प्रदायिनी होता है।