मानवाधिकारों के प्रसार के लिए बुनियादी ढांचागत विकास आवश्यक : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

मानवाधिकारों के प्रसार के लिए बुनियादी ढांचागत विकास आवश्यक : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

नयी दिल्ली, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को कहा कि मानवाधिकारों के प्रसार और सशक्तिकरण के लिए देश में व्यापक ढांचागत विकास काफी आवश्यक है।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नयी दिल्ली के भारत मंडपम में मानवाधिकार दिवस पर सभा को संबोधित करते हुए कहा,“मानवाधिकार उस समाज में बढ़ते हैं जहां कानून में समानता है और सभी के लिए न्याय तक पहुंच है।”

इस अवसर पर मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा की 75वीं वर्षगांठ भी मनाई गई।

उपराष्ट्रपति ने कहा,“कोई भी कानून से ऊपर नहीं है और कानून हमेशा ऊपर होता है, जो देश में नया मानदंड है। यह एक आदर्श बदलाव है जो देश में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने का एक अभिन्न पहलू है।”

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि पारदर्शिता और जवाबदेह शासन वर्तमान व्यवस्था में एक नया मानदंड है तथा यह मानवाधिकारों को बढ़ावा देने में एक गेम-चेंजर है। उन्होंने कहा कि पहले शासन प्रणाली में पारदर्शिता की कमी के कारण गरीब और कमजोर लोग वास्तविक पीड़ित हैं।

कार्यक्रम में बोलते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अरुण कुमार मिश्रा ने कहा,“मानवाधिकार दिवस समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के सम्मान की याद दिलाता है।”

न्यायमूर्ति ने कहा,“एनएचआरसी भारत में लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा और प्रचार-प्रसार के लिए प्रतिबद्ध है।” उन्होंने कहा,“हमारे सांस्कृतिक लोकाचार और मूल्य हमारे संविधान में प्रतिबिंबित होते हैं। मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में ऐसे आदर्श शामिल हैं जो हमारे मूल्यों के अनुरूप हैं। भारतीय संस्कृति न्याय के पक्ष में खड़े होने की क्षमता रखती है।”

आतंकवाद पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि इसने पूरी दुनिया में नागरिकों के मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया है। उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवादी कृत्यों और आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति रखना मानवाधिकारों के प्रति बहुत बड़ा अन्याय है।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि उन्नत प्रौद्योगिकियों के नैतिक प्रभाव गंभीर चिंता का विषय हैं। उन्होंने कहा,“इंटरनेट उपयोगी है, लेकिन इसका एक स्याह पक्ष भी है, घृणास्पद भाषण के माध्यम से गोपनीयता का उल्लंघन और गलत सूचना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर रही है।”

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