प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दी वीर पुली थेवर को श्रद्धांजलि

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दी वीर पुली थेवर को श्रद्धांजलि

नयी दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी वीर पुली थेवर को गुरुवार को उनकी जंयती के मौक पर भावभीनी श्रद्धांजलि दी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट करके अपने श्रद्धांजलि संदेश में कहा,“ मैं वीर पुली थेवर को उनकी जयंती पर नमन करता हूं। उनकी वीरता और दृढ़ संकल्प अनगिनत लोगों को प्रेरणा देते हैं। वह साम्राज्यवाद का विरोध करने में सबसे आगे थे। उन्होंने हमेशा जन लड़ाई लड़ी।”

एक सितम्बर 1715 में जन्मे श्री थेवर शुरूआती दौर के उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत का विरोध किया। वह तत्कालीन तमिल इलाके के 77 पोलिगन यानी स्थानीय सरदारों में से एक थे।

इस इलाके को आज तमिलनाडु में तिरुनेलवेली जिला के नेल कत्तुम सेवल इलाके के रूप में जाना जाता है। श्री थेवर वहाँ के बेहद शक्तिशाली योद्धा ये।

सोलहवीं वीं सदी के आखिरी दिनों में दक्षिण भारत के शक्तिशाली विजयनगरम साम्राज्य के विघटन के बाद पलयम का शासन कायम हुआ। इन नायकों और पॉलीगरों ने मुहर जागीदार आर. कार्ड के नवाब के अधीनता को कभी स्वीकार नहीं किया। अपने इलाकों के वे स्वायत्तशासक रहे।

जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने नवाब से कर वसूल करने का अधिकार हासिल किया तो पॉलीगरों ने ब्रिटिश अधिकार को भी मानने से इनकार कर दिया। कंपनी इससे नाराज हो गई और इसे पोल्गर विद्रोह का नाम दिया।

कंपनी के साथ पॉलीगरों का युद्ध शुरू हो गया, जो करीब आधी सदी तक चला। उस दौर में अंग्रेजों से लोहा लेने वाले महान पॉलिगन योद्धाओं में श्री थेवर प्रमुख योद्धा थे।

उन्होंने ब्रिटिश सेना को पहली बार वर्ष 1755 में चुनौती दी। तब ब्रिटिश कर्नल अलेक्जेंडर हेरोन ने पश्चिमी तमिलनाडु पर हमला किया था। नेल कत्तुम सेवल में श्री थेवर के किले को ब्रिटिश तोपें भेद नहीं सकीं।

श्री थेवर ने अंग्रेज शिविरों की जासूसी कराई, जिससे उन्हें लगातार खुफिया जानकारी मिलती रही। बहादुरी से किले की रक्षा करने से श्री थेवर की प्रतिष्ठा बुलंदियों पर पहुंच गई और उसका असर ये हुआ कि पश्चिमी पोलिगनो ने उनका नेतृत्व स्वीकार कर लिया। इससे श्री थेवर को विदेशी शासन के खिलाफ मजबूत किलाबंदी करने में मदद मिली।

तिरुनेलवेली का पुली थेवर पैलेस उनका मुख्यालय था।वहीं उनका जन्म हुआ था और उन्होंने अंतिम युद्ध भी यहीं लडा था। उनका वर्ष 1767 में निधन हो गया।

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