विदेश नीति दीर्घकालिक बनाकर वैश्विक प्रतिष्ठा हासिल करना जरूरी : कांग्रेस

नयी दिल्ली,  कांग्रेस ने कहा है कि दुनिया में भारत की छवि निष्पक्ष राष्ट्र की रही है इसलिए पूरी दुनिया हमारे महत्व को मानती रही है और जब कोई चुनौती खड़ी हुई तो पूरी दुनिया समाधान के लिए भारत की तरफ देखती रही, लेकिन अब इस स्थिति में बिखराव नजर आता है और वैश्विक स्तर पर हमारा प्रभाव घट रहा है और यह अत्यंत चिंता का विषय है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने गुरुवार को यहां पार्टी के नये मुख्यालय इंदिरा भवन में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि आज संयुक्त राष्ट्र संघ भी कमजोर हो रहा है और उसके निर्णय पर भी अमल नहीं किया जा रहा है। यह बड़ी चुनौती बन गई है और भारत इस तरह की चुनौतियों को सुधारने में अहम भूमिका निभा सकता है, लेकिन इसके लिए हमें अपनी छवि को फिर पहले के स्तर पर लाना होगा और विदेश नीति में व्यापक बदलाव कर यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी देश के दबाव में आये बिना अपने हितों को महत्व देते हुए संतुलित निर्णय लिया जाना चाहिए। हमें हर स्तर पर सतर्क रहना है और किसी भी घरेलू, पक्षपातपूर्ण या राजनीतिक एजेंडे को आगे नहीं बढाना है और ऐसा करना सिर्फ भूल नहीं, बड़ी भूल होगी।

उन्होंने गाजा को लेकर संयुक्त राष्ट्र में आये एक प्रस्ताव का हवाला देते हुए कहा कि विश्व में इस प्रस्ताव पर मतदान से बाहर रहकर भारत ने अपनी प्रतिष्ठा के अनुकूल काम नहीं किया है। उनका कहना था कि इससे हमारी स्थिति कमजोर हुई है। इजरायल मानव अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है। इस पर पिछले माह संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव आया था जिसमें 149 देशों ने इसमें प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, लेकिन गांधी की भूमि भारत ने संघर्ष विराम रोकने के इस प्रस्ताव में दुर्भाग्य से मतदान में हिस्सा नहीं लिया जिससे हमारी छवि को भारी नुकसान पहुंचा है।

कांग्रेस नेता ने कहा कि गाजा में नरसंहार हुआ है और मानव अधिकारों का जबर्दस्त उल्लंघन हुआ है। इस संघर्ष के दौरान असंख्य लोग मारे गये और बड़ी संख्या में लागों को नुकसान हुआ है। इजरायल के हमले में ज्यादातर बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं मारी जा रही हैं। निहत्थों पर युद्ध में हमला नहीं होता है यह युद्ध की नैतिकता है, लेकिन भारत ने दुर्भाग्य से इजरायली हमलों के खिलाफ आए इस प्रस्ताव में मतदान में हिस्सा नहीं लिया। जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका तथा ब्रिटेन जैसे इजरायल के मित्र देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया और संघर्ष को नकारा है लेकिन भारत मतदान से दूर रहा और यह निर्णय हमारी नैतिकता के विरुद्ध है।

उन्होंने कहा कि यह सरकार बोलना जानती है और जमीन पर कुछ होता नहीं है। उनका कहना था कि बोलने से कुछ नहीं होता है बल्कि किसी भी विषय पर निर्णय लेने का ही असर होता है और यही महत्वपूर्ण होता है। इन विषयों पर चर्चा होनी चाहिए कि जिस शिखर पर हम थे उसे तब ही हासिल कर पाएंगे जब हम हमारा निर्णय नैतिक होता है। सरकार को अपनी विदेश नीति में आमूल चूल परिवर्तन इसे दीर्घकालिक बनाया जाना चाहिए।

कांग्रेस नेता ने एक सवाल के जवाब में कहा कि अमेरिका के साथ किसी दबाव में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए। उनका कहना था कि व्यापार का महत्व है, लेकिन व्यापार कानून, नियम और समझौतों पर आधारित होता है। किसी भी देश के साथ जो भी समझौते हों उनमें अपने हित को ध्यान में रखते हुए संतुलित निर्णय लेते हुए समझौता होना चाहिए।उन्होंने कहा कि संसद में सरकार को विदेश नीति, व्यापार तथा अन्य मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए। भारत को विश्व व्यापार संगठन-डब्ल्यूटीओ सहित अन्य मुद्दों पर अपने वादे से मुकरना नहीं चाहिए। संसद में विदेश नीति तथा अन्य सभी मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए जो भी घरेलू हो या विदेश से जुड़े मामले हों एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते इन सब मुद्दों पर संसद में चर्चा होनी चाहिए। अमेरिका को स्पष्ट संदेश दिया जाना चाहिए कि भारत सबका सम्मान करता है, लेकिन किसी दबाव में कोई निर्णय नहीं लेता है यह संदेश उसे दिया जाना चाहिए।

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